उरांव आदिवासी समाज में बदलती सोच, उनकी भाषा और संस्कृति से दूर कर रही है
1. समाज ने हमें क्या दिया?
उरांव समाज ने हमें अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं से जोड़ा है।
यही सांस्कृतिक पहचान हमें "आदिवासी" का आरक्षण और विशेष अधिकार दिलाती है।
समाज के कारण ही आज कई लोग नौकरी lऔर अन्य क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रहे हैं।
2. समाज को हम क्या दे रहे हैं?
यह सोचना जरूरी है कि हम अपने समाज को क्या दे रहे हैं।
क्या हम अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को अगली पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं?
बच्चों को क्या हमने अपने त्योहार, रीति-रिवाज, और मूलभूत आदिवासी मूल्य सिखाए हैं?
3. अंग्रेजी भाषा के प्रति सोच और अपनी भाषा से दूरी
आज की सोच यह है कि केवल अंग्रेजी जानने वाले ही प्रगति कर सकते हैं।
उरांव समाज के लोग अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस करते हैं।
चीन और जापान ने अंग्रेजी पर निर्भर हुए बिना अपनी भाषा के जरिए प्रगति की है।
अपनी भाषा को त्यागकर, हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर रहे हैं।
4. गांव और परंपराओं से दूरी
आज आदिवासी समाज को जीवित रखने वाले गांवों में रहने वाले अनपढ़ लोग हैं।
पढ़े-लिखे लोग गांव छोड़कर शहरों में बस जाते हैं और परंपराओं से कट जाते हैं।
बच्चे गांव और त्योहारों से दूर रखे जाते हैं, यह सोचकर कि उनका बुरा असर पड़ेगा।
नौकरी के बाद लोग गांव से संबंध तोड़कर शहरों में बस जाते हैं।
5. बच्चों को भाषा और संस्कृति से दूर रखना
शिक्षित लोग अपने बच्चों से हिंदी और अंग्रेजी में बात करते हैं, अपनी भाषा में नहीं।
बच्चों को त्योहारों और रीति-रिवाजों से दूर रखा जाता है।
यह डर कि गांव के माहौल का बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा, उन्हें जड़ों से काट देता है।
6. क्या शहर में रहने वाले आदिवासी बच्चे संस्कृति बचा रहे हैं?
शहर में बसे लोगों के बच्चे भी शराब और अन्य बुरी आदतों में पड़ सकते हैं।
फिर भी गांव से दूरी बनाए रखने का कोई ठोस कारण नहीं है।
भाषा और संस्कृति से कटने का अर्थ है अपनी पहचान खो देना।
7. सोच बदलने की जरूरत
हमें अपनी सोच बदलनी होगी और अपनी भाषा और संस्कृति को बचाना होगा।
बच्चों को अपनी मातृभाषा सिखाने, त्योहारों में शामिल कराने और गांवों से जोड़ने की जरूरत है।
भाषा और संस्कृति के बिना आदिवासी समाज की पहचान खत्म हो जाएगी।
8. भाषा और संस्कृति का महत्व
यदि हमारी भाषा और परंपराएं जीवित रहेंगी, तभी आदिवासी समाज जीवित रहेगा।
अपनी भाषा में गर्व महसूस करना और उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा दायित्व है।
अपनी संस्कृति से जुड़ेगा, वही जीवित रहेगा
निष्कर्ष:
उरांव समाज की पहचान उसकी भाषा, संस्कृति और परंपराओं में है। यदि हम इन्हें त्याग देंगे, तो हमारी आदिवासी पहचान समाप्त हो जाएगी। इसलिए, हमें अपनी सोच बदलनी होगी, अपनी जड़ों से जुड़ना होगा और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करना होगा।
जय जोहार।
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